Friday, June 12, 2009

यह ऊंचा मकान

जब अपनी ऊँचाई आंकता है

बेशरम

पड़ोस की झुग्गी-झोपड़ियों में

झांकता है
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आईना

पत्थरों के गाँव में,

सूरज पेड़ की छॉव में

मछली देखो

डूबने के डर से

बैठ गयी है नाव में

10 comments:

Anonymous said...

bahut achchhi abhivyakti

Unknown said...

waahji waah !
kya dhaar hai !
mubaraq ho.............

Anonymous said...

"यह ऊंचा मकान

जब अपनी ऊँचाई आंकता है

बेशरम

पड़ोस की झुग्गी-झोपड़ियों में

झांकता है"

बहुत पसंद आईं ये पंक्तियां...

Manish Kumar said...

मकान वाली क्षणिका पसंद आई.

Anonymous said...

Simply Awesome!


Do hv a look at: http://ultimatechange.wordpress.com/

Sajal Ehsaas said...

Mam...both were just too good...mujhe apni fav choose karni ho to pehli waali kahoonga,kamaal ka lekhan


www.pyasasajal.blosgpot.com

अमिताभ श्रीवास्तव said...

कम शब्दो मे बहुत व्यापक अर्थो को समेटती हुई आपकी रचना अच्छी लगी/

dpkraj said...

वाह क्या बात है! बढ़िया
दीपक भारतदीप

Anonymous said...

बहुत खूब !!

Anonymous said...

बेहतरीन क्षणिकाएं !
उम्दा रचना!!

- सुलभ सतरंगी

हमारीवाणी

www.hamarivani.com

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