Saturday, June 5, 2010

पूरा एक घंटा बीत गया था और नम्बर आ ही नहीं रहा था. अभी पाँच मरीज और बचे थे फिर मेरा नम्बर आने वाला था. मैं कुछ जगहों पर खुद को असहाय पाती हूँ : डाँक्टर के क्लीनिक में बैठकर अपनी बारी का इंतजार करना; प्लेटफार्म पर ट्रेन के आने का इंतजार और ..... तीसरा वाला क्यूँ बताऊँ !

अचानक एक आईडिया आया क्यों न अगली बार से अंतिम मरीज़ के रूप में खुद को दिखाऊँ अर्थात देर वाला नम्बर ले लिया जाये फिर शायद इतना इंतजार न करना पड़े. पर यह तो पता चले कि डाँक्टर कितने बजे तक क्लीनिक में बैठते है. काउंटर पर बैठा व्यक्ति खाली ही तो बैठा है चलो पूछ ही लेते है.

"भईया ! ज़रा बताना तो डाँक्टर साहब क्लीनिक से जाते है?"

"क्यों क्या बात है?"

"जी कुछ नहीं बस ऐसे ही. सोच रही थी कि अगली बार से मैं लास्ट में दिखाने आया करूँगी."

"जी कुछ ठीक नहीं है डाँक्टर जी के जाने का. जब क्लीनिक में आये सारे मरीज़ ख़तम हो जाते हैं तब जाते हैं."

और मैं चुपचाप वापस बैठ गयी.

17 comments:

एक बेहद साधारण पाठक said...

सोचने पर मजबूर कर दिया

श्यामल सुमन said...

हालात तो यही हैं। आजकल डाक्टर तो प्रायः "अर्थ मानव" हो गए हैं - अतः सारे मरीज खत्म होने पर ही जाएंगे।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

M VERMA said...

चलो अच्छा हुआ हकीकत पता चल ग्या.
बहुत सुन्दर

sumit said...

sahi kaha doctor aur police aise hi hote hai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया!

Anonymous said...

मज़ेदार घटना.

The Campus News said...

भारत में सब काम लाइन में लग कर ही होता है. बिना लाइन के कुछ नहीं हो सकता है. यह इंडिया है मेरे यार....

شہروز said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.यूँ मेरी उपस्थिति कम ही रहती है...इसमें परिस्थितियाँ कारक रहती हैं..बहार कैफ..जब आया तो कई पोस्ट पढ़ गया..आपके अनुभव प्रचुर हैं..और शब्दों का आभाव भी आपके पास नहीं है..खूब लिख रही हैं.
यही दुआ है ज़ोर-क़लम और ज्यादा..आमीन.

संजय भास्‍कर said...

क्या बात है ? कितने सारे विषयों पर लिखा जा रहा है , एक अलग सोच और प्रश्नों ने तुम्हारी अभिव्यक्ति को जो नया आयाम दिया है

संजय भास्‍कर said...

आज मैं पहली बार आप के ब्लोग पे आया , और आते ही इक अलग तरह के विचारो को काव्य के रूप मे बह्ते देखा , बहुत अच्छी लगी आप की रचना..........

रचना दीक्षित said...

बहुत खूब!!!!!!!!!!!!!!!! चलो जल्दी ही पता चल गया

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह!!! क्या बात है. बहुत बढिया तरीके से अपनी बात कही है आपने.

Parul kanani said...

sahi pakda razia ji :)

योगेन्द्र मौदगिल said...

ha..ha... wah..KHATAM ka badiya prayog...

Priyanka Soni said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

शरद कोकास said...

अच्छी लघुकथा है ।

Arvind Mishra said...

हा हा हा
और हाँ बिग बस की आवाज आपकी भी हो सकती है ,ठहाकेदार आवाज -ताऊ को पकडिये !

हमारीवाणी

www.hamarivani.com

इंडली

About Me

My Photo
Razia
गृहस्थ गृहिणी
View my complete profile

Followers

Encuesta

रफ़्तार
www.blogvani.com
चिट्ठाजगत