Wednesday, April 14, 2010
नीद से लड़ते हुए जब थकी-हारी
फिर नीद आ जाती है
सपना देखना मेरा तुम्हें जाहिर हो
इसलिये बड़बड़ाती हूँ
.
रक्तपिपासु घूमते है निर्द्वन्द
देखकर डर जाती हूँ
फिर जन्मने की ख्वाहिश में
अक्सर मैं मर जाती हूँ
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9 comments:
nice
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति.
दोनों ही टुकडे बहुत खूबसूरत बन पडे हैं । शुभकामनाएं
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
बहुत ही सुन्दर रचना हैं ! दोनों ही कविता अच्छी है !
interesting...
..अभिव्यक्ति का ज़ाहिर होना इसे ही कहते हैं ....................बहस प्रभावपूर्ण
रक्तपिपासु घूमते है निर्द्वन्द
देखकर डर जाती हूँ
फिर जन्मने की ख्वाहिश में
अक्सर मैं मर जाती हूँ...
In diggajon ke baad mai kya kahun?Waisebhi aapki aakhari do panktiyon ne mujhe nishabd kar diya..
नीद से लड़ते हुए जब थकी-हारी
फिर नीद आ जाती है
सपना देखना मेरा तुम्हें जाहिर हो
इसलिये बड़बड़ाती हूँ
waaaaaahhhhhhhhh...kitni pyaari baat kahi hai aapne...lazawaab