Tuesday, June 9, 2009
सच्चाई को कहना सीखो
सच्चाई को सहना सीखो
बुलंदी के अभिलाषी हैं तो
कभी कभार ढहना सीखो
उजड़ गए हैं घर तो क्या
चौराहों पर रहना सीखो
पत्थर-पत्थर छूकर गुज़रो
पानी-पानी बहना सीखो
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ग़ज़ल
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10 comments:
बहुत सुन्दर.
प्रेरणा के साथ सुन्दर रचना। इसी संदर्भ में खुद की पंक्तियाँ याद आयीं-
रोकर मैंने हँसना सीखा गिरकर उठना सीख लिया।
आते जाते हर मुश्किल से डटकर लड़ना सीख लिया।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
umda !
namaskar mitr,
aapki saari posts padhi , aapki kavitao me jo bhaav abhivyakt hote hai ..wo bahut gahre hote hai .. aapko dil se badhai ..
is kavita ne to dil me ek ahsaas ko janam de diya hai ..
dhanyawad.....
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
Vijay
Prarnaprad sundar rachna.....
जीवन के सत्य से परिचित कराती रचना।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
السلام علیکم
आपकी कविता पढकर हम भी ढह गये, क्यूंकि मैं अधिकतर धार्मिक ब्लाग पर ही कमेंट करता हूं, क्यू ना आप उर्दू में भी लिखें, उर्दू यूनिकोड बहुत आसान भी है, कहें तो यह में उर्दू युनिकोड में आपको भेजूं, होसके तो antimawtar.blogspot.com देखें
عمر کیرانوی
delhi
umarkairanvi@gmail.com
ek prenatmaka kawita
''पत्थर-पत्थर छूकर गुज़रो
पानी-पानी बहना सीखो'' ये पंक्तियाँ तो गागर में सागर हैं रज़िया जी ।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु
rdkamboj@gmail.com
बहुत सुन्दर शिक्षा ! शुभकामनाएं !