Monday, April 5, 2010
कुछ कारणो से लम्बे समय से ब्लागजगत से दूर रही. आज एक रचना के साथ लौट रही हूँ.
चलो धूप से बात करें
अब तो शुभ प्रभात करें
.
रिश्ता-रिश्ता स्पर्श करें
अब तो ना आघात करें
.
सुनियोजित करते ही हैं
कुछ तो अकस्मात करें
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तेरे-मेरे अपने है-सपने
फिर किसका रक्तपात करें
.
नेह का प्यासा अंतर्मन
कोई नया सूत्रपात करें
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ग़ज़ल
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9 comments:
सुनियोजित करते ही हैं
कुछ तो अकस्मात करें
वाह सरल शब्द और गहरे अर्थ
सुन्दर
सुंदर कविता। ऐसी रचनाओं का स्वागत है।
bhut khub rajiya ji
तेरे-मेरे अपने है-सपने
फिर किसका रक्तपात करें
samta ka yek naya path
saadar
praveen pathik
9971969084
spasht dil se abhivyakt...
हर इक पंक्ति ने मिरे भीतर तक गहरा असर किया
उफ़ रज़िया ये तूने क्या लिख,दिया क्या लिख दिया !
उर्दू की वीणा पर मधुर एक तान सी क्या छेड़ दी
तेरे इस मीठे संगीत ने हिंदी का भी भला कर दिया !
अगर तू इसी तरह वापस लौटा करती है तो वापस जा
इस पछुआ की पवन ने दिल को हरा-भरा कर दिया !
जब भी पढ़े हैं हमने गाफिल किसी के प्यारे-प्यारे हर्फ़
भीतर से निकाल कर यूँ वां अपना दिल ही रख दिया
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
स्वागत ! ............
behad saral lekin bahut hi gahre arth liye rachna