लोग चिल्ला रहे थे. वह भी चिल्ला रहा था. लोग गालियाँ सुना रहे थे. वह भी गालियाँ सुना रहा था.
मैनें कहा : इंसान ऐसे होते हैं.
लोग चिल्ला रहे थे. वह शांत था. लोग गालियाँ सुना रहे थे. वह मुस्करा रहा था..
मैनें कहा : इंसान ऐसे भी होते हैं
वह चिल्ला रहा था. लोग शांत थे. वह गालियाँ सुना रहा था. लोग मुस्करा रहे थे.
मैनें कहा : इंसान ऐसे भी होते हैं
नीद से लड़ते हुए जब थकी-हारी
फिर नीद आ जाती है
सपना देखना मेरा तुम्हें जाहिर हो
इसलिये बड़बड़ाती हूँ
.
रक्तपिपासु घूमते है निर्द्वन्द
देखकर डर जाती हूँ
फिर जन्मने की ख्वाहिश में
अक्सर मैं मर जाती हूँ
कुछ कारणो से लम्बे समय से ब्लागजगत से दूर रही. आज एक रचना के साथ लौट रही हूँ.
चलो धूप से बात करें
अब तो शुभ प्रभात करें
.
रिश्ता-रिश्ता स्पर्श करें
अब तो ना आघात करें
.
सुनियोजित करते ही हैं
कुछ तो अकस्मात करें
.
तेरे-मेरे अपने है-सपने
फिर किसका रक्तपात करें
.
नेह का प्यासा अंतर्मन
कोई नया सूत्रपात करें