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Thursday, January 27, 2011

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एक बैल जंगल के रास्ते जा रहा था. उसके सींग बड़े-बड़े थे. वह मस्ती से हरी-हरी घास खाता हुआ जा रहा था कि अचानक एक पेड़ की अपेक्षाकृत नीची झुकी हुई शाखा में उसका सींग फँस गया. उसने जोर लगाया तो वह शाखा टूट गयी और वह फिर पहले जैसा मस्ती से चलने लगा. उसे अपने ताकत का अन्दाजा हो गया. एकाएक उसे शरारत सूझी और उसने जानबूझ कर दूसरे पेड़ की शाखा से अपनी सींग फँसा लिया. उसने फिर जोर लगाया और वह शाखा भी टूट गयी. उसे अब इस खेल में मज़ा आने लगा वह आगे बढ़ता गया और रास्ते में जो भी शाखा नीची झुकी हुई दिखाई देती उसमें वह अपनी सींग अड़ा देता और ताकत लगाकर उसे तोड़ देता. उसने बहुत सारे शाखाओं को तोड़ दिया. अभी वह और आगे बढ़ा ही था कि एक और शाखा दिखाई दी, यह शाखा अपेक्षाकृत मजबूत थी. बैल ने आव देखा न ताव उसमें भी सींग अड़ा दिया. अबकी बार उसकी सींग शाखा को तोड़ नहीं पाई. उसने सींग को छुड़ाने के लिये पूरी ताकत लगा दी, परिणामस्वरूप वह शाखा तो नहीं टूटी पर उसकी एक सींग ही टूट गई. वह दर्द से बिलबिलाता हुआ चला गया.

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Tuesday, November 2, 2010

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एक व्यक्ति की भक्ति से प्रसन्न होकर देवता प्रकट हुए और बोले दो दिन बाद तुम पूरे परिवार के साथ मिलना मैं तुम्हें वरदान देना चाहता हूँ. वह प्रसन्न हो गया और सपरिवार दो दिन बाद वरदान लेने के लिये उपस्थित हुआ. देवता ने 'नारी प्रथम' का अनुसरण करते हुए पहले उसकी पत्नी से कहा कि वह कुछ माँगे. उसकी पत्नी ने खुद को दुनिया की सबसे सुन्दर स्त्री होने का वरदान माँगा और वह तत्काल दुनियाँ की सबसे सुन्दर स्त्री हो गई.

अब बारी उस व्यक्ति की थी. देवता ने उससे वरदान माँगने को कहा. वह अपनी पत्नी की सुन्दरता से जला-भुना था. उसने अपनी पत्नी के सिर पर सींग माँग लिया.अब उसकी पत्नी न तो सुन्दर रही और न सामान्य.

तीसरा अवसर उसके लड़के को वरदान देने का था. देवता ने कहा 'तुम कुछ भी माँग लो, मैं उसे पूरा कर दूंगा.'

पुत्र अपनी माता-पिता के व्यवहार और तथाकथित वरदान से आहत था. उसने सिर्फ यह माँगा कि मेरे माता-पिता पहले जैसे हो जायें और वैसा ही हो गया.

Saturday, June 5, 2010

पूरा एक घंटा बीत गया था और नम्बर आ ही नहीं रहा था. अभी पाँच मरीज और बचे थे फिर मेरा नम्बर आने वाला था. मैं कुछ जगहों पर खुद को असहाय पाती हूँ : डाँक्टर के क्लीनिक में बैठकर अपनी बारी का इंतजार करना; प्लेटफार्म पर ट्रेन के आने का इंतजार और ..... तीसरा वाला क्यूँ बताऊँ !

अचानक एक आईडिया आया क्यों न अगली बार से अंतिम मरीज़ के रूप में खुद को दिखाऊँ अर्थात देर वाला नम्बर ले लिया जाये फिर शायद इतना इंतजार न करना पड़े. पर यह तो पता चले कि डाँक्टर कितने बजे तक क्लीनिक में बैठते है. काउंटर पर बैठा व्यक्ति खाली ही तो बैठा है चलो पूछ ही लेते है.

"भईया ! ज़रा बताना तो डाँक्टर साहब क्लीनिक से जाते है?"

"क्यों क्या बात है?"

"जी कुछ नहीं बस ऐसे ही. सोच रही थी कि अगली बार से मैं लास्ट में दिखाने आया करूँगी."

"जी कुछ ठीक नहीं है डाँक्टर जी के जाने का. जब क्लीनिक में आये सारे मरीज़ ख़तम हो जाते हैं तब जाते हैं."

और मैं चुपचाप वापस बैठ गयी.

हमारीवाणी

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