Monday, July 13, 2009

जाने कितने सपने पालता है मन
फिर सपनों को खंगालता है मन

नाज़ुक इतना कि टूटता रहता है
खुद ही को फिर संभालता है मन

खुद ही के खिलाफ बयान देकर
अपना भडा़स निकालता है मन

कभी बच्चों सा मचल जाता है
कभी हर बात को टालता है मन


आसमान छूने की आरज़ू इसकी
गेंद सा खुद को उछालता है मन

23 comments:

श्यामल सुमन said...

नाज़ुक इतना कि टूटता रहता है
खुद ही को फिर संभालता है मन

क्या बात है रजिया जी। सारे शेर खूबसूरत हैं। बधाई।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

USHA GAUR said...

कभी बच्चों सा मचल जाता है
कभी हर बात को टालता है मन

==
sunder abhivyakti

mehek said...

आसमान छूने की आरज़ू इसकी
गेंद सा खुद को उछालता है मन
waah sahi baat sunder gaxal

ओम आर्य said...

man har pal apane sapane ko khangalata hai ..........bahut sahi

Prem Farukhabadi said...

खुद ही के खिलाफ बयान देकर
अपना भडा़स निकालता है मन

bahut sundar!!

Shruti said...
This comment has been removed by the author.
Shruti said...

जाने कितने सपने पालता है मन
फिर सपनों को खंगालता है मन

नाज़ुक इतना कि टूटता रहता है
खुद ही को फिर संभालता है मन

खुद ही के खिलाफ बयान देकर
अपना भडा़स निकालता है मन

कभी बच्चों सा मचल जाता है
कभी हर बात को टालता है मन


bahut khoob. aapne itne aasaan shabdo kitni gehri baat kahi hai.

I m touched.

-Sheena
http://sheena-life-through-my-eyes.blogspot.com
http://hasya-cum-vayang.blogspot.com/
http://mind-bulb.blogspot.com/
====================

anil said...

बेहतरीन रचना
नाज़ुक इतना कि टूटता रहता है
खुद ही को फिर संभालता है मन
लाजवाब !

Harshvardhan said...

rachna achchi lagi post padvane ka shukria........

मुकेश कुमार तिवारी said...

रजि़या जी,

बहुत अच्छी बात कही है :-

आसमान छूने की आरज़ू इसकी
गेंद सा खुद को उछालता है मन

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Mohinder56 said...

बहुत गहरी बात कह दी आपने थोडे से लफ़जों में..
बधाई

विवेक सिंह said...

बहुत सुन्दर !

SURINDER RATTI said...

नाज़ुक इतना कि टूटता रहता है
खुद ही को फिर संभालता है मन
razia ji man ki sahi vyakhya ki aapne .....
Surinder

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"जाने कितने सपने पालता है मन
फिर सपनों को खंगालता है मन"
इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...

daanish said...

कभी बच्चों सा मचल जाता है
कभी हर बात को टालता है मन

achha sher nikala hai
ghazal ka lehja dilchasp hai
badhaaee . . .
---MUFLIS---

kshama said...

" khudko gend-sa uchhalta hai man..."kya khyal hai...!

vikram7 said...

आसमान छूने की आरज़ू इसकी
गेंद सा खुद को उछालता है मन
अति सुन्दर

Neeraj Kumar said...

bahut hi achchhi gazal hai...

आसमान छूने की आरज़ू इसकी
गेंद सा खुद को उछालता है मन

Udan Tashtari said...

कभी बच्चों सा मचल जाता है
कभी हर बात को टालता है मन


-बहुत सुन्दर!!!

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

bhut hi behtreen prstuti hai
खुद ही के खिलाफ बयान देकर
अपना भडा़स निकालता है मन

mera prnaam swikaar kare
saadar
praveen pathik
9971969084

admin said...

Man ke bhaawon ko khoobsoorti se bayaan kiya hai. Badhaayi.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

संजीव गौतम said...

कभी बच्चों सा मचल जाता है
कभी हर बात को टालता है मन
बहुत अच्छा शेर हुआ है. वाह!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

कभी बच्चों सा मचल जाता है
कभी हर बात को टालता है मन
आसमान छूने की आरज़ू इसकी
गेंद सा खुद को उछालता है मन

बहुत सुन्दर लिखा है आपने..

हमारीवाणी

www.hamarivani.com

इंडली

About Me

My Photo
Razia
गृहस्थ गृहिणी
View my complete profile

Followers

Encuesta

रफ़्तार
www.blogvani.com
चिट्ठाजगत