आजकल सीरियल के शीर्षक जिस ओर संकेत करते हैं उसके कथानक और समग्र प्रभाव बिलकुल अलग और आमतौर पर नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने वाले होते हैं. मैं खासतौर पर कलर्स पर प्रसारित हो रहे दो सीरियलों का उल्लेख करना चाहूँगी.
प्रथम, 'न आना इस देश लाडो', जिसमें पूरे सीरियल में स्त्रियों पर अत्याचार ही दिखाया गया है और अत्याचार करने वाले की हर स्थान, हर घटनाविशेष में सफल दिखाया गया है. इसका समग्र प्रभाव नकारात्मक ही है. संघर्षरत सर्वदा आशंकाओं और परेशानियों से घिरा हुआ है.
द्वितीय, बालिका वधू भी कमोबेश उसी तरह के प्रभाव से युक्त है. आनन्दी/गहना का बालिका बधू बनना, आनन्दी का आगे पढ़ाई न कर पाना, जगदीश का रैंगिंग के बाद पलायन आखिर किस ओर संकेत दे रहे हैं. क्या ये नकारात्मकता को जन्म नहीं दे रहे?
सीरियल निर्माताओं का टी आर पी मोह नकारा नहीं जा सकता. पर इस कारण सीरियल में नकारात्मकता परोसना उचित नहीं है. समग्र प्रभाव का भी ध्यान रखना आवश्यक है.
5 comments:
आपकी बातो से पूर्णतया सहमत.
आदरणीया रज़िया जी
नमस्कार ! आदाब !
निस्संदेह , इन सीरियल्स ने घरेलू समीकरण बिगाड़े हैं । … लेकिन भला-बुरा लोगों को स्वयं तय करना चाहिए ।
हम तो समाचार और संगीत तथा कॉमेडी सीरियल्स के अलावा कोई सीरियल देखते ही नहीं । … और इनकी भी कोई लत नहीं …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सही कह रही हैं आप !
आप के ब्लॉग पर आना अच्छा लगा !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Razia ji बहुत सही कह रही है आप , ऐसा ही हो रहा है। आभार!
आपका भी मेरे ब्लोग पर स्वागत है।
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