Thursday, January 27, 2011

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एक बैल जंगल के रास्ते जा रहा था. उसके सींग बड़े-बड़े थे. वह मस्ती से हरी-हरी घास खाता हुआ जा रहा था कि अचानक एक पेड़ की अपेक्षाकृत नीची झुकी हुई शाखा में उसका सींग फँस गया. उसने जोर लगाया तो वह शाखा टूट गयी और वह फिर पहले जैसा मस्ती से चलने लगा. उसे अपने ताकत का अन्दाजा हो गया. एकाएक उसे शरारत सूझी और उसने जानबूझ कर दूसरे पेड़ की शाखा से अपनी सींग फँसा लिया. उसने फिर जोर लगाया और वह शाखा भी टूट गयी. उसे अब इस खेल में मज़ा आने लगा वह आगे बढ़ता गया और रास्ते में जो भी शाखा नीची झुकी हुई दिखाई देती उसमें वह अपनी सींग अड़ा देता और ताकत लगाकर उसे तोड़ देता. उसने बहुत सारे शाखाओं को तोड़ दिया. अभी वह और आगे बढ़ा ही था कि एक और शाखा दिखाई दी, यह शाखा अपेक्षाकृत मजबूत थी. बैल ने आव देखा न ताव उसमें भी सींग अड़ा दिया. अबकी बार उसकी सींग शाखा को तोड़ नहीं पाई. उसने सींग को छुड़ाने के लिये पूरी ताकत लगा दी, परिणामस्वरूप वह शाखा तो नहीं टूटी पर उसकी एक सींग ही टूट गई. वह दर्द से बिलबिलाता हुआ चला गया.

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Monday, November 22, 2010

आजकल सीरियल के शीर्षक जिस ओर संकेत करते हैं उसके कथानक और समग्र प्रभाव बिलकुल अलग और आमतौर पर नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने वाले होते हैं. मैं खासतौर पर कलर्स पर प्रसारित हो रहे दो सीरियलों का उल्लेख करना चाहूँगी.

प्रथम, 'न आना इस देश लाडो', जिसमें पूरे सीरियल में स्त्रियों पर अत्याचार ही दिखाया गया है और अत्याचार करने वाले की हर स्थान, हर घटनाविशेष में सफल दिखाया गया है. इसका समग्र प्रभाव नकारात्मक ही है. संघर्षरत सर्वदा आशंकाओं और परेशानियों से घिरा हुआ है.

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द्वितीय, बालिका वधू भी कमोबेश उसी तरह के प्रभाव से युक्त है. आनन्दी/गहना का बालिका बधू बनना, आनन्दी का आगे पढ़ाई न कर पाना, जगदीश का रैंगिंग के बाद पलायन आखिर किस ओर संकेत दे रहे हैं. क्या ये नकारात्मकता को जन्म नहीं दे रहे?

सीरियल निर्माताओं का टी आर पी मोह नकारा नहीं जा सकता. पर इस कारण सीरियल में नकारात्मकता परोसना उचित नहीं है. समग्र प्रभाव का भी ध्यान रखना आवश्यक है.

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Tuesday, November 2, 2010

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एक व्यक्ति की भक्ति से प्रसन्न होकर देवता प्रकट हुए और बोले दो दिन बाद तुम पूरे परिवार के साथ मिलना मैं तुम्हें वरदान देना चाहता हूँ. वह प्रसन्न हो गया और सपरिवार दो दिन बाद वरदान लेने के लिये उपस्थित हुआ. देवता ने 'नारी प्रथम' का अनुसरण करते हुए पहले उसकी पत्नी से कहा कि वह कुछ माँगे. उसकी पत्नी ने खुद को दुनिया की सबसे सुन्दर स्त्री होने का वरदान माँगा और वह तत्काल दुनियाँ की सबसे सुन्दर स्त्री हो गई.

अब बारी उस व्यक्ति की थी. देवता ने उससे वरदान माँगने को कहा. वह अपनी पत्नी की सुन्दरता से जला-भुना था. उसने अपनी पत्नी के सिर पर सींग माँग लिया.अब उसकी पत्नी न तो सुन्दर रही और न सामान्य.

तीसरा अवसर उसके लड़के को वरदान देने का था. देवता ने कहा 'तुम कुछ भी माँग लो, मैं उसे पूरा कर दूंगा.'

पुत्र अपनी माता-पिता के व्यवहार और तथाकथित वरदान से आहत था. उसने सिर्फ यह माँगा कि मेरे माता-पिता पहले जैसे हो जायें और वैसा ही हो गया.

Saturday, June 5, 2010

पूरा एक घंटा बीत गया था और नम्बर आ ही नहीं रहा था. अभी पाँच मरीज और बचे थे फिर मेरा नम्बर आने वाला था. मैं कुछ जगहों पर खुद को असहाय पाती हूँ : डाँक्टर के क्लीनिक में बैठकर अपनी बारी का इंतजार करना; प्लेटफार्म पर ट्रेन के आने का इंतजार और ..... तीसरा वाला क्यूँ बताऊँ !

अचानक एक आईडिया आया क्यों न अगली बार से अंतिम मरीज़ के रूप में खुद को दिखाऊँ अर्थात देर वाला नम्बर ले लिया जाये फिर शायद इतना इंतजार न करना पड़े. पर यह तो पता चले कि डाँक्टर कितने बजे तक क्लीनिक में बैठते है. काउंटर पर बैठा व्यक्ति खाली ही तो बैठा है चलो पूछ ही लेते है.

"भईया ! ज़रा बताना तो डाँक्टर साहब क्लीनिक से जाते है?"

"क्यों क्या बात है?"

"जी कुछ नहीं बस ऐसे ही. सोच रही थी कि अगली बार से मैं लास्ट में दिखाने आया करूँगी."

"जी कुछ ठीक नहीं है डाँक्टर जी के जाने का. जब क्लीनिक में आये सारे मरीज़ ख़तम हो जाते हैं तब जाते हैं."

और मैं चुपचाप वापस बैठ गयी.

Sunday, May 9, 2010

अभिभूत हूँ मैं तुमने जो सन्देश मातृ दिवस पर मुझे दिया है. आज भी जब याद करती हूँ उन क्षणों को जब मैनें मातृत्व सुख अर्जित किया था तो रोमांचित हो जाती हूँ. और यह मातृत्व सुख तुमने ही तो प्रदान किया था - सर्वप्रथम. ऊँगली पकड़कर तुम्हें चलना सिखाने से लेकर अब तक, जबकि तुम बी. टेक. अंतिम वर्ष में हो सारे दृश्य तो घूम गये एक एक कर. आज तुमने मुझे हर खुशी देने की बात कही है, इससे बड़ी खुशी और क्या हो सकती है. ऐसा लगता है तुम अब वह छोटी सी गुड़िया नहीं रही जिससे मेरा वार्तालाप कुछ इस तरह रहा हो :

माँ आज मैनें एक लड़के को मारा.

अच्छा फिर उस लड़के ने कुछ नही कहा?

अरे माँ ! उस लड़के को पता ही नहीं चला कि मैनें उसे मारा है.

तुम इस मासूमियत को मत खोना, और दृढ़ता भी बरकरार रखना. वक्त ने तुम्हें बहुत कुछ सिखाया है. वक्त और अवसर को कभी मत खोना. हम बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं तुम्हारे लौटने का. बहुत सारी परीक्षाएँ तुमने उत्तीर्ण की है पर असली परीक्षा तो अब सामने है. अंतिम बात किसी भी स्थिति में धैर्य मत खोना.

तुम्हारी माँ

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बेटी : एकता

Saturday, May 1, 2010

मजदूर दिवस पर मेरी कविता पढें यहाँ क्लिक करके

Saturday, April 24, 2010

लोग चिल्ला रहे थे. वह भी चिल्ला रहा था. लोग गालियाँ सुना रहे थे. वह भी गालियाँ सुना रहा था.

मैनें कहा : इंसान ऐसे होते हैं.

लोग चिल्ला रहे थे. वह शांत था. लोग गालियाँ सुना रहे थे. वह मुस्करा रहा था..

मैनें कहा : इंसान ऐसे भी होते हैं

वह चिल्ला रहा था. लोग शांत थे. वह  गालियाँ सुना रहा था. लोग मुस्करा रहे थे.

मैनें कहा : इंसान ऐसे भी होते हैं

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